All Major 1 and 2 students of Semester 5 will opt this paper.
It is paper 1 in Semester 5.
It envolves quiz, FAQs and some detailed topics. Syllabus is following


- Teacher: Admin User
Moodle is an open-source Learning Management System (LMS) that provides educators with the tools and features to create and manage online courses. It allows educators to organize course materials, create quizzes and assignments, host discussion forums, and track student progress. Moodle is highly flexible and can be customized to meet the specific needs of different institutions and learning environments.
Moodle supports both synchronous and asynchronous learning environments, enabling educators to host live webinars, video conferences, and chat sessions, as well as providing a variety of tools that support self-paced learning, including videos, interactive quizzes, and discussion forums. The platform also integrates with other tools and systems, such as Google Apps and plagiarism detection software, to provide a seamless learning experience.
Moodle is widely used in educational institutions, including universities, K-12 schools, and corporate training programs. It is well-suited to online and blended learning environments and distance education programs. Additionally, Moodle's accessibility features make it a popular choice for learners with disabilities, ensuring that courses are inclusive and accessible to all learners.
The Moodle community is an active group of users, developers, and educators who contribute to the platform's development and improvement. The community provides support, resources, and documentation for users, as well as a forum for sharing ideas and best practices. Moodle releases regular updates and improvements, ensuring that the platform remains up-to-date with the latest technologies and best practices.
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लखनऊ में इमामबाडे
लखनऊ अट्ठारवीं और उन्नीसवीं शताब्दियों में शिया नवाबों द्वारा अजादारी अर्थात मोहर्रम के मातम से संबंधित अनुष्ठानों के लिये बनवाये गये अनेक इमामबाड़ों के लिये प्रसिद्ध है। इमामबाड़ा एक आयताकार भवन होता है। जिसमें मेहराबयुक्त पाँच, सात अथवा नौ द्वार होते है। मुगल वंश के शासक अपने मस्जिद समूह इस प्रकार बनवाते थे कि उसकी अक्ष मक्का की ओर हो। किन्तु अवध के नवाबों ने इमामबाड़ा समूह का निर्माण इस प्रकार कराया कि उनमें इमामबाड़ा मुख्य भवन था और उससे संबंद्ध मस्जिद उसके पश्चिम की ओर थी। परिणामस्वरूप इन इमारतों में एक विचित्र प्रकार का दिशा संबंधी भ्रम दिखायी देता हे। इमामबाड़ें सदैव दक्षिण की ओर मुँह किये बनाये गये। लखनऊ में केवल सौदागर का इमामबाड़ा और काला इमामबाड़ा इसके अपवाद है जिनके मुँह पूर्व की ओर है।
इमामबाड़े का अन्दरूनी हिस्सा तीन भागों में विभाजित होता है केन्द्रीय कक्ष, मजलिसी और शाहनशीन। इनमें से शाहनशीन इमामबाड़े का सबसे महत्वपूर्ण भाग होता हे। यह मुख्य कक्ष के दक्षिण की ओर उठाकर बनाया गया चबूतरा है जिस पर मोहर्रम के महीने में जरीह, ताजिये और अलम स्थापित किये जाते हैं।
जरीह हजरत हुसैन के उस रौजे की अनुकृति है जो पहले इराक में बना था और जिसे बाद में नष्ट कर दिया गया । ताजिया हजरत हुसैन के नये रौजे की अनुकृति है। एक परंपरा के अनुसार तैमूर लंग अपने जीवन के बाद के वर्षों में प्रतिवर्ष करबला की तीर्थयात्रा करता था किन्तु एक वर्ष वह वृद्धावस्था के कारण करबला नही जा सका। तब उसे स्वप्न में यह दिव्य आदेश मिला कि वह करबला न जाकर उसकी एक अनुकृति बनवा ले और उसी की जियारत करे। इस प्रकार तैमूर लंग के समय में ताजिए का जन्म हुआ। करबला के युद्ध में इमाम हुसैन के झण्डे की प्रतिकृति को अलम कहते है।
मजलिसी में मिम्बर रखा होता है। मिम्बर सीढ़ीदार उस ऊँची कुर्सी को कहते है जिस पर बैठकर जाकिर मजलिस में धार्मिक उपदेश देता है। परंपरा के अनुसार मिम्बर के आविष्कार का श्रेय स्वयं मोहम्मद साहब को दिया जाता है। यह मिम्बर इमामबाड़े का एक आवश्यक हिस्सा है और शिया संप्रदाय की धार्मिक भावनाआें का केन्द्र है। लखनऊ के विभिन्न इमामबाड़ां में स्थापित मिम्बरों की अपनी-अपनी विशेषताएँ हैं। आसिफी इमामबाड़े का मिम्बर सादा अवश्य है किन्तु मिर्जा दबीर द्वारा प्रयुक्त होने के कारण महत्वपूर्ण है। शाहनजफ इमामबाड़े में दो मिम्बर स्थापित हैं जिनमे से एक लकड़ी से बना है और दूसरे पर चाँदी का पत्र चढ़ा है। हुसैनाबाद इमामबाड़े और सौदागर के इमामबाड़ें के मिम्बर भी अत्यंत भव्य हैं। इमामबाड़ा मुगल साहिबा का मिम्बर भारत में स्थापित विभिन्न मिम्बरों में सबसे अधिक ऊँचाई वाला है। इसका निर्माण संभवतः इमामबाड़े के अन्दर ही किया गया था। यह अपनी लकड़ी की नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है। शिया मुसलमानों में 40 मिम्बरों की ज़ियारत की रस्म है। दसवीं मोहर्रम की शाम को शिया मुसलमानों के अतिरिक्त अन्य संप्रदायों और धर्मों के लोग भी 40 इमामबाड़ों में जाकर ‘चहलमिम्बरी’ की रस्म पूरी करते थे। हकीम सैयद यूसुफ हुसैन ने गुफरान म’ आब के इमामबाड़े के सामने जन्नत की खिड़की नामक एक नया इमामबाड़ा बनवाया जिसमें एक बड़े मिम्बर पर 39 छोटे-छोटे मिम्बर रखे गये और अब चलहमिम्बरी 40 इमामबाड़ां के स्थान पर एक ही इमामबाड़ें में संभव हो सकी। जा़किर अर्थात धर्मोपदेशक इस मिम्बर पर बैठकर मातम के लिए आये लोगां को करबला की दुःखद घटना के विषय में बताया है। इस घटना से संबंधित विभिन्न वाकिए, हदीस, ख्वान, वाकिया़ ख्वान और सोज़ ख्वान भी सुनाते हैंं।
इमामबाड़े की अन्दरूनी दीवारें फूल-पत्तियां, ज्यामितीय आकृतियों, कुरान की आयतों और धार्मिक कथनों से अलंकृत की जाती है। इमामबाड़े के भीतरी भाग को सजाने के लिए चौखट में लगे आइनों, तस्वीरों, झाड़फानूसां, रंग-बिरंगे लटटुआें, मोमबत्ती के आधारों का प्रयोग किया जाता है। मोहर्रम के महीने में इमामबाड़ों को कलापूर्ण ढंग से सुसज्जित किया जाता है और बाहरी ओर रोशनी की जाती है। यह काम मुख्य रूप से महीने के नवें दिन किया जाता है, जिसे शब-ए-आशूर कहा जाता है।
कुछ इमामबाड़ों के पश्चिम की ओर नमाज अदा करने के लिए मस्जिद भी मिलती है। बाद में बनाए गये इमामबाड़ों में निर्माता तथा/अथवा उसके परिवार के सदस्यों की कब्रें भी बनाई गई। इमामबाड़ा समूह में बगीचां की भी व्यवस्था की गई जिससे बड़े आकार के प्रागंण के विस्तार के प्रभाव को कुछ मन्द किया जा सके।

This course is for two credits and compulsory to pass out.
In this course the material on Kankali Tila and Sonkh will be given. Though the quiz will conatain all units.
You will get course content related to above two topics.
PPTs and FAQs.
Assignments are already announced in classroom. You must submit before 10 November to your respective teachers.